Waqf Bill: भारत में मुस्लिम समुदाय से जुड़ी एक प्रमुख संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने शुक्रवार को ऐलान किया कि वह आगामी इफ्तार, ईद मिलन और अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं लेगी। यह निर्णय वक्फ संशोधन विधेयक के बारे में उनके स्पष्ट रुख के कारण लिया गया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह फैसला उन नेताओं की ओर से सरकार के संविधान विरोधी कदमों का समर्थन करने पर लिया गया है, जो अपने आप को सेक्युलर बताते हैं।
वक्फ संशोधन विधेयक पर जमीयत का विरोध
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी आपत्ति का कारण वक्फ संशोधन विधेयक को बताया है, जिसे सरकार ने पारित किया था। मौलाना अरशद मदनी ने आरोप लगाया कि इस विधेयक के समर्थन में कुछ नेता अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण खड़े हो गए हैं, जो मुस्लिम समुदाय के अधिकारों के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा, “देश में मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए और मुसलमानों के खिलाफ हो रहे अन्याय को देखते हुए, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये नेता सत्ता की लालच में चुप हैं और मुसलमानों के साथ हो रहे अत्याचारों को नजरअंदाज कर रहे हैं।”
सेक्युलर नेताओं के कार्यक्रमों का बहिष्कार
मौलाना अरशद मदनी ने स्पष्ट किया कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद अब उन नेताओं के किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेगी, जो अपनी पार्टी की राजनीति के लिए सेक्युलर होने का दावा करते हैं, लेकिन मुस्लिमों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर खामोश रहते हैं। उन्होंने कहा, “हम इन नेताओं के इफ्तार पार्टियों, ईद मिलन और अन्य कार्यक्रमों का बहिष्कार करेंगे, ताकि हम उनके दोगले रवैये को प्रदर्शित कर सकें।”
यह फैसला विशेष रूप से उन नेताओं पर केंद्रित है जो नितीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान जैसे नामों को लेकर आलोचना की गई है। जमीयत का कहना है कि इन नेताओं ने अपनी राजनीतिक सफलता को मुस्लिमों के समर्थन से प्राप्त किया है, लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने मुस्लिम समुदाय की समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया है।
मुस्लिम नेताओं के रवैये की आलोचना
मौलाना मदनी ने कहा, “जो नेता मुस्लिमों के वोटों के लिए सेक्युलरता का नारा लगाते हैं, सत्ता में आते ही वे पूरी तरह से मुस्लिम समुदाय की समस्याओं को भूल जाते हैं। इन नेताओं की यह दोगली नीति देश के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इन नेताओं के वक्फ संशोधन विधेयक पर रुख ने उनके असली चेहरे को उजागर किया है।
उन्होंने आगे कहा, “यहां तक कि जब मुसलमानों के साथ अन्याय हो रहा है, तब भी ये नेता सत्ता की खातिर चुप रहते हैं। इनकी यह चुप्पी उनकी मुस्लिम विरोधी मानसिकता को दिखाती है। ऐसे नेताओं के साथ संबंध रखना और उनके कार्यक्रमों में भाग लेना हमें स्वीकार नहीं है।”
जमीयत का आह्वान और मुस्लिम संगठनों से समर्थन
मौलाना मदनी ने अपनी बात को खत्म करते हुए अन्य मुस्लिम संगठनों से भी अपील की कि वे इस प्रतीकात्मक विरोध में शामिल हों और इन नेताओं के कार्यक्रमों का बहिष्कार करें। उन्होंने कहा, “यह समय है कि हम अपनी आवाज उठाएं और ऐसे नेताओं को यह बताएं कि हम उनके नीतियों और उनके समर्थन को मान्यता नहीं देंगे। हमें अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना होगा और उन्हें सत्ता के लालच में हमारे अधिकारों को न छीनने देना होगा।”
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का यह कदम उनके बढ़ते राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव को दर्शाता है। यह उनके संविधान और मुस्लिम समुदाय के अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता को भी उजागर करता है। अब यह देखना होगा कि अन्य मुस्लिम संगठन इस आह्वान का किस तरह से समर्थन करते हैं और क्या इस बहिष्कार का प्रभाव आगामी चुनावों में दिखेगा।