Supreme Court ने मंगलवार (25 मार्च) को तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (BRS) के तीन विधायकों की अयोग्यता से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र की राजनीति पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि हाल के वर्षों में महाराष्ट्र ने ‘आया राम, गया राम’ के मामले में अन्य सभी राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए संकेत दिया कि पिछले तीन वर्षों में महाराष्ट्र में राजनीतिक अस्थिरता चरम पर रही है, जहां विधायकों के दल बदल ने लोकतंत्र का मजाक बना दिया है।
‘आया राम, गया राम’ का इतिहास: कहां से आया यह मुहावरा?
भारतीय राजनीति में ‘आया राम, गया राम’ का अर्थ है बार-बार दल बदल करने वाले नेता। यह मुहावरा हरियाणा के एक विधायक गया लाल के नाम पर बना है। वर्ष 1967 में गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली थी, जिससे पूरे देश में हलचल मच गई थी। इसके बाद देशभर में दल-बदल की राजनीति तेज हो गई थी। सरकारें गिरने और बनने लगीं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई।
इसी को रोकने के लिए संसद को वर्ष 1985 में संविधान में 52वां संशोधन करना पड़ा। इसके तहत 10वीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसे दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) के रूप में जाना जाता है। इस कानून के तहत दल बदल करने वाले विधायकों और सांसदों को अयोग्य ठहराने का प्रावधान है।
Supreme Court की तल्ख टिप्पणी: महाराष्ट्र बना दल-बदल का गढ़
मंगलवार को Supreme Court में न्यायमूर्ति भूषण आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने तेलंगाना के तीन BRS विधायकों की अयोग्यता मामले की सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने कहा, “‘आया राम, गया राम’ की शुरुआत भले ही मेरे भाई (न्यायमूर्ति मसीह) के राज्य (पंजाब-हरियाणा) से हुई हो, लेकिन महाराष्ट्र ने इस मामले में बाकी सभी राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।”
कोर्ट ने कहा कि 10वीं अनुसूची का उद्देश्य दल-बदल पर रोक लगाना था, लेकिन वर्तमान में इसका कोई असर नहीं दिख रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया तो यह 10वीं अनुसूची का मजाक बन जाएगा।
तेलंगाना का मामला: कांग्रेस में शामिल हुए BRS विधायक
Supreme Court में तेलंगाना के तीन BRS विधायकों की अयोग्यता को लेकर सुनवाई हो रही थी। ये विधायक हैं:
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तेलम वेंकट राव
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कडियम श्रीहरि
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दानम नागेंद्र
इन विधायकों ने कांग्रेस जॉइन कर ली थी, जबकि वे BRS के विधायक थे। इनमें से एक ने तो कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा। इस पर उनकी अयोग्यता के लिए याचिका दायर की गई थी। याचिका में मांग की गई थी कि इन विधायकों को अयोग्य घोषित कर उनकी सीटों पर नए विधानसभा चुनाव कराए जाएं।
महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल: तीन साल में कई दल-बदल
पिछले तीन वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े स्तर पर दल-बदल देखने को मिला है।
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शिवसेना में विभाजन (मई 2022):
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एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की थी।
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शिंदे के साथ 38 अन्य विधायक भी बीजेपी में शामिल हो गए।
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इसके बाद महाराष्ट्र में शिंदे-बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी।
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एनसीपी का विभाजन (जुलाई 2023):
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अजित पवार ने शरद पवार का साथ छोड़ दिया।
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अजित पवार अपने समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी-शिंदे सरकार में शामिल हो गए।
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एनसीपी में बड़ी टूट हुई, जिससे पार्टी कमजोर हो गई।
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महाराष्ट्र की यह राजनीतिक स्थिति ही सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का आधार बनी।
दल-बदल विरोधी कानून: क्यों हो रही है अवहेलना?
भारत में दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) होने के बावजूद भी विधायक लगातार पार्टियां बदलते हैं।
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राजनीतिक संरक्षण: बड़े नेताओं का संरक्षण होने के कारण कई बार विधायक अयोग्य घोषित नहीं किए जाते।
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विधायी प्रक्रिया की धीमी गति: दल-बदल के मामले लंबित रहते हैं, जिससे विधायक अपनी सदस्यता बचाने में सफल हो जाते हैं।
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नैतिकता की कमी: दल-बदल कर सत्ता में भागीदारी पाने का चलन बढ़ता जा रहा है।
कोर्ट की सख्ती: राजनीतिक अस्थिरता पर रोक की कोशिश
Supreme Court की तल्ख टिप्पणी से संकेत मिलता है कि अब न्यायपालिका दल-बदल मामलों में सख्ती से कार्रवाई कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि यदि राजनीतिक दलों के विरोधाभास को रोका नहीं गया तो लोकतंत्र को गंभीर नुकसान हो सकता है।
Supreme Court ने महाराष्ट्र की राजनीति पर टिप्पणी कर यह साफ कर दिया कि दल-बदल का खेल लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। महाराष्ट्र में पिछले तीन वर्षों में हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने न केवल पार्टियों को विभाजित किया बल्कि जनता के भरोसे को भी तोड़ा। ऐसे में कोर्ट की सख्ती से यह उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में ‘आया राम, गया राम’ की परंपरा पर अंकुश लगाया जा सकेगा।