World Book Fair: विश्व पुस्तक मेले में आचार्य बालकृष्ण ने बताया पतंजलि का वैश्विक योगदान

World Book Fair: विश्व पुस्तक मेले में आचार्य बालकृष्ण ने बताया पतंजलि का वैश्विक योगदान

World Book Fair: नई दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडप में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में मुख्य वक्ता के रूप में पाटंजलि योगपीठ के महासचिव आचार्य बालकृष्ण ने कार्यक्रम को संबोधित किया। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत (भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत) द्वारा आयोजित किया गया था। आचार्य बालकृष्ण ने इस अवसर पर कहा कि इस प्रकार के आयोजन जनता के लिए बहुत लाभकारी होते हैं, क्योंकि इसमें विश्वस्तरीय ज्ञान-आधारित साहित्य उपलब्ध होता है।

1. पाटंजलि ने योग और आयुर्वेद को वैश्विक प्रतिष्ठा दिलाई

आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि पाटंजलि ने योग और आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित किया है। उन्होंने योग के बारे में कहा कि यह गर्व की बात है कि आज योग को पूरे विश्व में स्वीकार किया गया है। यदि दुनिया के विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले लोग किसी शब्द का समान अर्थ जानते हैं, तो वह शब्द है योग।

2. आयुर्वेद: एक सम्पूर्ण विज्ञान

आचार्य जी ने आयुर्वेद के बारे में भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद एक सम्पूर्ण विज्ञान है और इसका कोई प्रतिस्पर्धी नहीं है। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद को विश्व स्तर पर स्थापित करने के लिए जो काम होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। आयुर्वेद जीवनशैली से संबंधित है और यह हमें यह सिखाता है कि हमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए प्रकृति के साथ तालमेल में रहना चाहिए।

3. आयुर्वेद और एलोपैथी में अंतर

आचार्य बालकृष्ण ने आयुर्वेद और एलोपैथी में अंतर बताते हुए कहा कि एलोपैथी एक कृत्रिम चिकित्सा पद्धति है जो आवश्यकता के अनुसार प्रयोग की जाती है, जबकि आयुर्वेद हमारे जीवन में पहले से ही निहित है। आयुर्वेद प्राकृतिक है और इसका उद्देश्य शरीर और मानसिक स्वास्थ्य को प्राकृतिक तरीके से संतुलित करना है। उन्होंने यह भी कहा कि आयुर्वेद का प्रयोग केवल दवाइयों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सम्पूर्ण जीवनशैली है।

4. पाटंजलि का योगदान: विश्व हर्बल एन्साइक्लोपीडिया

आचार्य जी ने पाटंजलि द्वारा प्रकाशित विश्व हर्बल एन्साइक्लोपीडिया का उल्लेख किया, जिसमें 32 हजार औषधीय पौधों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इससे पहले केवल 12 हजार औषधीय पौधों की जानकारी उपलब्ध थी। इसके अलावा, पाटंजलि ने आयुर्वेद आधारित पुस्तक ‘सौमित्रेयनिदानम’ भी प्रकाशित की है, जिसमें नई बीमारियों, विकारों और रोगों का वर्णन किया गया है जो नवयुगचार के अनुसार दुनिया में उभर रहे हैं। इस पुस्तक में 500 बीमारियों, जिनमें 471 मुख्य बीमारियाँ शामिल हैं, का चित्र सहित वर्णन किया गया है।

World Book Fair: विश्व पुस्तक मेले में आचार्य बालकृष्ण ने बताया पतंजलि का वैश्विक योगदान

5. देश के प्रति समर्पण और पाटंजलि का दृष्टिकोण

आचार्य बालकृष्ण ने पाटंजलि के उत्पादों के बारे में बताते हुए कहा कि पाटंजलि के उत्पाद इस दृष्टिकोण से बनाए जाते हैं कि हमारे परिवार के लोग इन्हें उपयोग करेंगे। इसलिए हमारे उत्पादों में गुणवत्ता और शुद्धता के सभी मापदंडों का पालन किया जाता है। उन्होंने कहा कि उनके लिए देश व्यापार नहीं, बल्कि परिवार है। उनका मानना है कि किसी भी उत्पाद का निर्माण करते समय हर निर्माता को यह सोचने की आवश्यकता है कि वह अपने परिवार के लिए क्या बना रहा है।

6. युवाओं को प्रेरणा: भविष्य के लिए काम करें

आचार्य बालकृष्ण ने युवाओं से अपील की कि जो भी काम आप अपने लिए या देश के लिए कर रहे हैं, उसे केवल आज के लिए न करें, बल्कि सोचें कि आप उस काम से भविष्य में कैसे लाभ उठा सकते हैं। उन्होंने युवाओं को प्रेरित किया कि वे अपने कार्यों को दीर्घकालिक दृष्टिकोण से करें और भविष्य की भलाई के लिए प्रयासरत रहें।

7. पाटंजलि के माध्यम से प्रकाशित पुस्तकें

आचार्य जी ने यह भी बताया कि पाटंजलि ने योग, आयुर्वेद, शिक्षा, चिकित्सा, शोध, प्राचीन ग्रंथों और प्रेरणादायक धार्मिक पुस्तकों पर कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इसके साथ ही, पाटंजलि ने भारतीय शिक्षा बोर्ड के तहत एक स्वदेशी शिक्षा प्रणाली की नींव रखी है, जिसके माध्यम से कक्षा 1 से कक्षा 10 तक का पाठ्यक्रम भी प्रकाशित किया जा रहा है।

8. आचार्य बालकृष्ण का दृष्टिकोण और प्रेरणा

आचार्य बालकृष्ण ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि उनका दृष्टिकोण हमेशा यह रहा है कि देश और समाज के लिए काम करते हुए हमें अपनी संस्कृति और विरासत को संजोए रखना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि पाटंजलि ने केवल एक व्यापारिक दृष्टिकोण से काम नहीं किया, बल्कि उन्होंने अपनी सांस्कृतिक धरोहर और जीवनशैली को भी प्रमुखता दी है। उनका यह दृष्टिकोण पाटंजलि को एक वैश्विक पहचान दिलाने में सफल रहा है।

आचार्य बालकृष्ण ने अपने संबोधन में यह स्पष्ट किया कि पाटंजलि ने न केवल योग और आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित किया है, बल्कि वे भारतीय संस्कृति, शिक्षा, और जीवनशैली को भी बढ़ावा दे रहे हैं। उनका विश्वास है कि देश के विकास के लिए स्वदेशी उत्पादों और संस्कृति को अपनाना आवश्यक है। आचार्य बालकृष्ण के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि उनका उद्देश्य केवल व्यापार नहीं है, बल्कि वे समाज और देश के समग्र कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। उनके विचारों से प्रेरणा लेकर हम भी अपने जीवन को संतुलित और स्वस्थ बनाने के साथ-साथ समाज की भलाई के लिए काम कर सकते हैं।