America के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान ने हड़कंप मचा दिया है, जिसमें उन्होंने दावा किया कि अमेरिकी सरकार ने भारत में चुनावों के दौरान सत्ता परिवर्तन के लिए सहायता राशि प्रदान की थी। इस मामले पर भारत के विदेश मंत्रालय ने अपनी पहली प्रतिक्रिया दी है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा कि, “हमने ऐसी खबरें देखी और सुनी हैं कि पूर्व अमेरिकी सरकार ने भारत में चुनावों को प्रभावित करने के लिए फंडिंग की थी। अमेरिकी सरकार की इस फंडिंग का खुलासा चिंताजनक है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि यह कृत्य भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप का स्पष्ट उदाहरण है। भारतीय एजेंसियां भी इस मामले की जांच कर रही हैं, लेकिन इस समय सार्वजनिक रूप से अधिक जानकारी देना उचित नहीं होगा।
डोनाल्ड ट्रंप ने उठाए सवाल
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में इस मुद्दे पर बड़ा खुलासा करते हुए सवाल उठाया था कि अमेरिका को भारत में चुनावों के लिए धन देने की क्या आवश्यकता थी। उन्होंने दावा किया कि इलॉन मस्क के नेतृत्व वाले डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (DOGE) ने यह जानकारी दी है कि अमेरिका ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 175 करोड़ रुपये) की सहायता प्रदान की थी।
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— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) February 21, 2025
ट्रंप ने सवाल उठाया, “हम भारत को यह पैसा क्यों दे रहे थे? क्या पिछली सरकार भारत में किसी विशेष दल को जिताने के लिए यह सब कर रही थी? हमें इस बारे में भारत सरकार को बताना होगा।”
भारत ने जताई नाराजगी, अमेरिकी सरकार से मांगा स्पष्टीकरण
भारत सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और अमेरिका से इस संबंध में स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय संबंधों से जुड़ा हुआ है और भारत की संप्रभुता पर सीधा प्रभाव डालता है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत और स्वतंत्र है। भारत किसी भी प्रकार के विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा। यदि अमेरिका की पिछली सरकार द्वारा ऐसा कोई प्रयास किया गया है, तो इसकी गहन जांच की जाएगी।
क्या कहती है अमेरिकी रिपोर्ट?
DOGE की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिका ने चुनावी जागरूकता बढ़ाने और मतदाता भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न संगठनों के माध्यम से यह धन आवंटित किया था। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं किया गया कि इस फंडिंग का लाभ किस राजनीतिक दल या समूह को हुआ।
रिपोर्ट के मुताबिक, USAID (यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) के माध्यम से यह फंडिंग की गई थी। USAID का मुख्य उद्देश्य आमतौर पर विकास कार्यों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने में सहायता करना होता है, लेकिन इस बार इस फंडिंग को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
विशेषज्ञों की राय
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह आरोप सत्य साबित होते हैं, तो यह भारत-अमेरिका संबंधों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। भारत पहले ही अपनी संप्रभुता और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप को लेकर कड़े रुख के लिए जाना जाता है।
पूर्व राजदूत हर्षवर्धन श्रीवास्तव ने कहा, “यदि यह सच है, तो यह भारत के आंतरिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप है। अमेरिका को स्पष्ट करना होगा कि इस फंडिंग का उद्देश्य क्या था और यह किसके निर्देश पर किया गया था।”
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार ने कहा, “चुनावों में बाहरी हस्तक्षेप किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए चिंता का विषय है। भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में ऐसे किसी भी प्रयास को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।”
विपक्षी दलों ने भी उठाए सवाल
इस मुद्दे पर भारतीय राजनीति में भी हलचल मच गई है। विपक्षी दलों ने इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “यदि अमेरिका ने भारत में चुनावों को प्रभावित करने के लिए पैसा दिया है, तो यह भारतीय लोकतंत्र पर सीधा हमला है। सरकार को इस मामले में पारदर्शिता बरतनी चाहिए और अमेरिका से जवाब मांगना चाहिए।”
वहीं, भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष और स्वतंत्र है। कोई भी विदेशी ताकत हमारे देश की राजनीति को प्रभावित नहीं कर सकती। यह मामला गंभीर है और इसकी उचित जांच होनी चाहिए।”
भारत सरकार इस मामले पर जल्द ही अमेरिकी अधिकारियों के साथ बातचीत कर सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह मामला और आगे बढ़ता है, तो यह भारत-अमेरिका संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
अब सभी की नजरें इस पर टिकी हैं कि अमेरिका इस मुद्दे पर क्या प्रतिक्रिया देता है और भारत सरकार इस पर क्या कदम उठाती है।