PM Narendra Modi ने दिल्ली के सुंदर नर्सरी में आयोजित ‘जहान-ए-खुसरो’ सूफी संगीत महोत्सव के 25वें वर्षगांठ पर कार्यक्रम में भाग लिया। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने सूफी संगीत की महत्ता और भारतीय सभ्यता में इसके योगदान पर प्रकाश डाला। साथ ही, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसते हुए इस कार्यक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा, “जहान-ए-खुसरो में आकर खुशी महसूस होती है। इस कार्यक्रम में एक अलग सी खुशबू है। यह खुशबू भारत की माटी की है। वही हिंदुस्तान, जिसे हज़रत अमीर खुसरो ने स्वर्ग से तुलना की थी। हमारा हिंदुस्तान वह स्वर्ग का बग़ीचा है, जहां सभ्यता के हरे रंग ने फूलों की तरह खिलने की शुरुआत की।”
उन्होंने सूफी परंपरा को भारत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सम्मानित करते हुए कहा कि सूफी संतों ने न केवल आध्यात्मिक दूरी को कम किया, बल्कि उन्होंने दुनियावी दूरी को भी घटाया। पीएम मोदी ने प्रसिद्ध सूफी संत रूमी का उद्धरण साझा करते हुए कहा, “रूमी ने कहा था कि शब्दों को ऊँचाई दीजिए, आवाज़ को नहीं, क्योंकि फूल बारिश में उगते हैं, तूफ़ान में नहीं।”
इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार
अब नफ़रतों को दिल से निकाल दीजिए pic.twitter.com/4y6viglJeA— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) March 8, 2025
अखिलेश यादव का तंज
इस कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक वीडियो साझा किया और तंज कसते हुए लिखा, “इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार, अब सपनों को दिल से निकाल दीजिए।” अखिलेश यादव के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है और उनकी टिप्पणी पर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का सूफी परंपरा पर जोर
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में सूफी परंपरा को भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि भारत में सूफी संतों ने कभी अपनी उपासना सिर्फ मस्जिदों और खानकाहों तक सीमित नहीं रखी। वे न केवल क़ुरान के शब्दों से परिचित थे, बल्कि उन्होंने वेदों की भी सराहना की और अद्भुत भक्ति गीतों को अज़ान के साथ जोड़ा। इस तरह से सूफी संगीत ने भारत के विविधतापूर्ण सांस्कृतिक परिदृश्य में एक समृद्ध स्थान प्राप्त किया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर रमज़ान की शुभकामनाएँ भी दीं और कहा, “किसी भी देश की सभ्यता को उसकी संगीत और कला से आवाज़ मिलती है और इसकी अभिव्यक्ति कला के माध्यम से होती है।” उन्होंने बताया कि ‘जहान-ए-खुसरो’ कार्यक्रम देश के कला और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल कला का उत्सव है, बल्कि यह शांति का संदेश भी फैलाता है।
जहान-ए-खुसरो का 25 साल का सफर
पीएम मोदी ने ‘जहान-ए-खुसरो’ महोत्सव की 25वीं वर्षगांठ का जश्न मनाते हुए कहा, “यह आयोजन इस बार अपनी 25वीं सालगिरह मना रहा है। यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है कि इस कार्यक्रम ने लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई है।”
प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि ऐसे कार्यक्रम देश में सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और वे लोगों को एक साथ लाने का काम करते हैं। उन्होंने सूफी संगीत को भारत की एकता और भाईचारे का प्रतीक बताया, जो देश के हर कोने में शांति और सद्भावना फैलाने का कार्य करता है।
इस आयोजन में प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन भारत की सांस्कृतिक धरोहर और सूफी परंपरा के प्रति उनकी श्रद्धा को दर्शाता है। वहीं, अखिलेश यादव की टिप्पणी से यह स्पष्ट है कि राजनीति में ऐसे कार्यक्रमों को लेकर विभाजन और आलोचना भी होती है।
यह घटना यह सिद्ध करती है कि कला, संस्कृति, और संगीत न केवल एक देश की पहचान होती है, बल्कि यह राजनीति, समाज और मानवीय संबंधों को भी प्रभावित करती है। ‘जहान-ए-खुसरो’ महोत्सव का 25वां वर्ष देश के सांस्कृतिक सामंजस्य को और मजबूत करेगा।